बचपन मे 1 ₹ की पतंग के पीछे , 2 की.मी. तक भागते थे , न जाने कीतने चोटे लगती थी , फिर भी हम दौड़ते रहते थे , वो पतंग भी हमे बहोत दौड़ाती थी ।। आज पता चलता है कि , दरअसल वो पतंग नहीं थी , एक चुनौती थी , खुशियों को हांसिल करने के लिए दौड़ना पड़ता है , वो दुकानो पे नहीं मिलती , शायद यही जिंदगी की दौड़ है ।। IG:- words_with_heart_ ©Harish Labana पतंगोत्सव । । #kite #kitefestival #Love #writer