- सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' अट नहीं रही है आभा फागुन की तन सट नहीं रही है I कहीं सांस लेते हो, घर - घर भर देते हो, उड़ने को नभ में तुम पर - पर कर देते हो,