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पड़े घुंघरू कहीं बिखरे ज़मीं है धूल तबलो पर , सहे


पड़े घुंघरू कहीं बिखरे ज़मीं है धूल तबलो पर ,
सहे कैसे बता साकी ब तबले धूल जम जाना ।।

के मोसीकी उदासी से भरी है देख सुनकर के
तिरी आखें बहाएंगी ये सुनकर खून ओ जाना ।।

©Zoga Bhagsariya
  
पड़े घुंघरू कहीं बिखरे ज़मीं है धूल तबलो पर ,
सहे कैसे बता साकी ब तबले धूल जम जाना ।।

के मोसीकी उदासी से भरी है देख सुनकर के
तिरी आखें बहाएंगी ये सुनकर खून ओ जाना ।।

पड़े घुंघरू कहीं बिखरे ज़मीं है धूल तबलो पर , सहे कैसे बता साकी ब तबले धूल जम जाना ।। के मोसीकी उदासी से भरी है देख सुनकर के तिरी आखें बहाएंगी ये सुनकर खून ओ जाना ।। #Shayari

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