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जब तक कोई व्यक्ति हमारे लिए #अन्य' या #भिन्न' व्यक

जब तक कोई व्यक्ति हमारे लिए #अन्य' या #भिन्न' व्यक्ति होता है, तब तक हम अपने भावों को भाषा के माध्यम से उस तक पहुँचाते हैं, लेकिन जैसे ही वह व्यक्ति हमारे लिए अन्य या भिन्न से #अनन्य' या #अभिन्न' हो जाता है, वैसे ही हमारी भाषा हमारे भाव के साथ जुड़ जाते हैं, हम आँखों और उँगलियों से भी अपने भाव व्यक्त करने लगते हैं .... भाषा में भाव हो या ना हो, किन्तु भाव की अपनी ही एक भाषा होती है, इसलिए जहाँ भाषा नहीं भाव की प्रधानता होती है वहीं 'आत्मीय' और 'प्रगाढ़' #सम्बन्ध होते हैं !!!!!
▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ #alone
जब तक कोई व्यक्ति हमारे लिए #अन्य' या #भिन्न' व्यक्ति होता है, तब तक हम अपने भावों को भाषा के माध्यम से उस तक पहुँचाते हैं, लेकिन जैसे ही वह व्यक्ति हमारे लिए अन्य या भिन्न से #अनन्य' या #अभिन्न' हो जाता है, वैसे ही हमारी भाषा हमारे भाव के साथ जुड़ जाते हैं, हम आँखों और उँगलियों से भी अपने भाव व्यक्त करने लगते हैं .... भाषा में भाव हो या ना हो, किन्तु भाव की अपनी ही एक भाषा होती है, इसलिए जहाँ भाषा नहीं भाव की प्रधानता होती है वहीं 'आत्मीय' और 'प्रगाढ़' #सम्बन्ध होते हैं !!!!!
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