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जब क्षुधा पेट की बुझ न सके,जठर धधकने लगता है। अग्र

जब क्षुधा पेट की बुझ न सके,जठर धधकने लगता है।
अग्र - ताल पर बैठा  पक्षी, हर - पल मृगया तकता है।
बड़ी मछलियां छोटी को हैं  निगल रही  बेधड़क जहां,
फिर गहराई में छिपकर भी, कौन  यहांँ बच सकता है?
अरुण शुक्ल अर्जुन 
प्रयागराज 

(पूर्णत: मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित)

©अरुणशुक्ल अर्जुन #NojotoWriter 
 Prateek Singh(MBA) Jyoti Goswami Hariom Rana mansi sahu Manish Rana  KAJAL THAKUR
जब क्षुधा पेट की बुझ न सके,जठर धधकने लगता है।
अग्र - ताल पर बैठा  पक्षी, हर - पल मृगया तकता है।
बड़ी मछलियां छोटी को हैं  निगल रही  बेधड़क जहां,
फिर गहराई में छिपकर भी, कौन  यहांँ बच सकता है?
अरुण शुक्ल अर्जुन 
प्रयागराज 

(पूर्णत: मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित)

©अरुणशुक्ल अर्जुन #NojotoWriter 
 Prateek Singh(MBA) Jyoti Goswami Hariom Rana mansi sahu Manish Rana  KAJAL THAKUR