जब क्षुधा पेट की बुझ न सके,जठर धधकने लगता है। अग्र - ताल पर बैठा पक्षी, हर - पल मृगया तकता है। बड़ी मछलियां छोटी को हैं निगल रही बेधड़क जहां, फिर गहराई में छिपकर भी, कौन यहांँ बच सकता है? अरुण शुक्ल अर्जुन प्रयागराज (पूर्णत: मौलिक स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित) ©अरुणशुक्ल अर्जुन #NojotoWriter