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मोस्ट की मीठी से बनी मुफ्त की घोषणाएं देश में सजे

मोस्ट की मीठी से बनी मुफ्त की घोषणाएं देश में सजे चुनाव उत्सव के बीच मुफ्त में बढ़ती जा रही है घोषणा पत्र हो या संकल्प पत्र उसकी रेसिपी की प्रमुख सामग्री शब्द मुफ्त है यह सब किसी हद मुक्त हो सकता है या नहीं होना चाहिए इस प्रदेश का शीर्षक न्यायालय भी समय सफर वो कर रहा है इधर इसी वर्ष चुनाव उत्साह के लिए तैयारी हो रही है हिमाचल प्रदेश में आओ तो सोच आधार पर कार्य कर रहे कर्मचारी मुखर हुए क्योंकि कुछ महीने से कुछ वर्ग अपनी अपनी मांगों को लेकर उत्तेजित थे इसलिए आउटसोर्स वाले कुछ पीछे रहते जरूरी यह था कि उन्हें सत्य पर परिचित करवाया जा सकता हूं कि जिस नीति बनाने की घोषणा हुई है चल सकती महेंद्र सिंह इन पीस 37000 कर्मचारियों पर नीति बनाने वाले मंत्रिमंडल समिति के अध्यक्ष है कहने को संख्या है लेकिन कितने लोग हैं कितने आए और कितने करते हैं यह समझा जा सकता है आउटसाइड क्या है यह एक प्रकार का अनुबंध है सेवाओं के लिए ऐसे भी कह सकते हैं कि भारी है वह आउट सोर्स ही होगी कई वर्षों से यह व्यवस्था जारी है किंतु विडंबना यह है कि गई अनुबंध और संवाद सेवाओं के उत्पादों की नहीं हुई मनुष्य की हो गई है बीच की सलाखों से मनमर्जी और लालच की हवा आती रही है तथा मनुष्य तत्व का संरक्षण होता गया

©Ek villain #सेवाओं और वस्तुओं की बजाय मनुष्य की आउटसोर्सिंग

#promiseday
मोस्ट की मीठी से बनी मुफ्त की घोषणाएं देश में सजे चुनाव उत्सव के बीच मुफ्त में बढ़ती जा रही है घोषणा पत्र हो या संकल्प पत्र उसकी रेसिपी की प्रमुख सामग्री शब्द मुफ्त है यह सब किसी हद मुक्त हो सकता है या नहीं होना चाहिए इस प्रदेश का शीर्षक न्यायालय भी समय सफर वो कर रहा है इधर इसी वर्ष चुनाव उत्साह के लिए तैयारी हो रही है हिमाचल प्रदेश में आओ तो सोच आधार पर कार्य कर रहे कर्मचारी मुखर हुए क्योंकि कुछ महीने से कुछ वर्ग अपनी अपनी मांगों को लेकर उत्तेजित थे इसलिए आउटसोर्स वाले कुछ पीछे रहते जरूरी यह था कि उन्हें सत्य पर परिचित करवाया जा सकता हूं कि जिस नीति बनाने की घोषणा हुई है चल सकती महेंद्र सिंह इन पीस 37000 कर्मचारियों पर नीति बनाने वाले मंत्रिमंडल समिति के अध्यक्ष है कहने को संख्या है लेकिन कितने लोग हैं कितने आए और कितने करते हैं यह समझा जा सकता है आउटसाइड क्या है यह एक प्रकार का अनुबंध है सेवाओं के लिए ऐसे भी कह सकते हैं कि भारी है वह आउट सोर्स ही होगी कई वर्षों से यह व्यवस्था जारी है किंतु विडंबना यह है कि गई अनुबंध और संवाद सेवाओं के उत्पादों की नहीं हुई मनुष्य की हो गई है बीच की सलाखों से मनमर्जी और लालच की हवा आती रही है तथा मनुष्य तत्व का संरक्षण होता गया

©Ek villain #सेवाओं और वस्तुओं की बजाय मनुष्य की आउटसोर्सिंग

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Ek villain

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