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तेरी गलियों में अब तक भटक रहा हूं मैं, तेरी आती जा

तेरी गलियों में अब तक भटक रहा हूं मैं,
तेरी आती जाती झलक में जाने क्यूं अटक रहा हूं मैं।
तूं थी तो मेरे आने से इन गलियों में भी जान आती थी,
अब जाने इन गलियों को क्यूं खटक रहा हूं मैं।
ना बेवफा तूं थी ना ही हमने दगा करी,
बस किस्मत का खेल था...
बस अब और तड़पने से बेहतर...     
उन यादों को जेहन से छटक रहा हूं मैं।

©Vasudha Uttam
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