जब जब मेरे खिड़की से अचानक तेज बारिश की बूंदें आने लगती है,मै उठकर खिड़की बंद नही करती..।मैं बस ठहर सी जाती हूँ...।भीगने देती हूं..सब कुछ...किताबों को...मेरी डायरी को..टेबुल पर रखी तुम्हारी घड़ी को..।भीगने देती हूं अटकी हुई कुछ ख्वाबों को,कुछ एहसासों को..खुदको..खुदमे तुमको....।बस...तब तब खूब याद आते हो तुम...। भिगने देती हूं...