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कांटों ने हमें खुशबू दी है फूलों ने हमेशा काटा है

कांटों ने हमें खुशबू दी है फूलों ने हमेशा काटा है बांहों ने पहनाई जंजीरे आहों ने दिया सन्नाटा है अपनों ने अड़ंगी मारी है गैरों से सहारा पाया है अनजान से राहत मिल गई पहचान से धोखा खाया है कुर्सी ने हमेशा ठोकर दी थैली में सदा  संदेह किए घड़ियालों से रिश्तेदारी कर मछली
 की तरह तड़पे हैं प्रिये... -गोपालदास व्यास

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