शर्म आए कभी शर्माइए जरा खून खौले तो खौलाइए जरा इस जुमलेबाज़ मुखौटे में नहीं भगत सिंह बनकर आइए जरा हैं आप मंहगी चादर में लिपटे हुज़ूर चेहरा भी दिखाइए ज़रा जिनकी टूटी है घरौंदों की ईंट कभी आकर हांथ बटाइए जरा डर का खेल पसंद है साहब को मुफलिसी को भी डराइए जरा राम जाने कहां वास करते हों जी आपभी बाहें फैलाइए जरा नहीं हुनर ग्वालों को समझने का मीरा को भी गुनगुनाइए जरा जिसने खून की सियासी रोटी दी ऐसे इतिहास को जलाइए जरा तस्वीर देख तस्वीरों से बोलते हैं असल में नजर मिलाइए ज़रा कुरबान हुए हैं लोग सरहद पर अपना फ़र्ज़ भी निभाइए ज़रा हर रंग रूप में राम वास करते हैं इस हरे रंग को मिलाइए जरा शर्म आए कभी शर्माइए जरा खून खौले तो खौलाइए जरा #हुज़ूर #वत्स #dsvatsa #vatsa #illiteratepoet #hindipoem #indianwriters शर्म आए कभी शर्माइए जरा खून खौले तो खौलाइए जरा इस जुमलेबाज़ मुखौटे में नहीं भगत सिंह बनकर आइए जरा