मन आज़ाद परिंदा ©आयुष्मान रेग्मी "आज़ाद परिंदा" आज़ाद परिंदा मन मेरा उड़ रहा चहुँ ओर क्या कहूँ बस यही के बन गया जंगली मोर। दो घड़ी ठहरता नही अब यहाँ तो कहीँ और चञ्चल वनमृग है जैसे