क्या खोया क्या पाया ना जाने क्या अज़ाब हुआ... रौनकों से मशगूल शहर ना जाने कब वीराँ हुआ... उस शहर की उस बस्ती की उस गली के उस घर में... हर दर-ओ-दीवार भी चीख़ उठी वो मंजर देख कर... क्या अर्श क्या फ़र्श ना जाने क्या हाल-ए-इन्सां हुआ... मुश्किलों से जूझता हर शख़्स-ए-आम परेशां हुआ... वो नन्ही सी जाँ.. साँस लेना सीखा जिसने कल ही... वो तरसती रही इक साँस को जिंदा रहने के लिए... थी नायाब कली वो मासूम उस दर-ए-जहां की... कि इक जाँ के ख़ातिर जिसने जाँ कुर्बां कर दी।। ©Sonam Verma #city_life#earthquakememory#JourneyOfLife