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व्यक्तित्व को दर्पण कर, श्रृद्धाभाव अर्पण कर, स्वय

व्यक्तित्व को दर्पण कर,
श्रृद्धाभाव अर्पण कर,
स्वयं का ना समर्पण कर,
पित्रों का तर्पण कर,
त्रुटि ना हो ऐसा प्रण कर,
अनर्थ के विरुद्ध रण कर,
पुण्य कर्म क्षण-क्षण कर
कहीं कोई अमंगल ना हो
सुखद कामना प्रतिक्षण कर ।।
पुष्पेन्द्र "पंकज"

©Pushpendra Pankaj
   प्रण

प्रण #कविता

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