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Unsplash मशरूफ हूं कुछ इस कदर जैसे धूल में हो जमी

Unsplash मशरूफ हूं कुछ इस कदर 
जैसे धूल में हो जमी बर्फ़ 

रूह से निकला कोई परिंदा 
छोड़ नहीं रहा कोई कसर 
 
तिलमिलाती आंखों से 
रख रहा लंबे सफर का सबक

फड़फड़ाने के बाद तलाश में
एक दिन ढूंढ लेगा वो अपना शहर।

©–Varsha Shukla
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