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दिवाली उनके भी जो काम और पढ़ाई की वजह से घर नहीं ज

दिवाली उनके भी जो काम और पढ़ाई की वजह से घर नहीं जा पाते।
पूरी रचना caption में पढ़ें। दिवाली... दिवाली.... दिवाली
कितना हसीन है ये त्योहार जिसने ना जाने कितनी सारी खुशियाँ अपने दामन में छुपा रखी होती है, है ना ऐसा लगता है कायनात की सारी खूबसूरत छटाएँ खुद में छुपा रखी है।
लगता है स्वर्ग धरा पर उतर आयी हो और ज़न्नत की सारी रोशनी साथ लायी हो।
मेरे लिए दिवाली बहुत मायने रखता है और मेरा पसंदीदा त्योहार भी है ठीक वैसे हीं जैसे किसी रोते बच्चे को उसकी पसंद का खिलौना।
मगर पिछले कुछ सालों की तरह इस बार भी दिवाली कुछ फीकी सी लग रही है और लगे भी क्यों ना इस बार भी अकेले हीं तो दिवाली मना रहा हूँ, अरे नहीं तुम लोग तो हो साथ मगर परिवार भी साथ होता तो यूँ खालीपन ना लगता, यूँ दिवाली की शाम थोड़ी उदास ना होती और मैं भी फूलझड़ी की तरह खिल जाता।
हर दिवाली पटाखों की दुकान के सामने से गुज़रते वक़्त ज़ेहन में एक हीं बात आती है, काश मैं भी घर पर होता और पहले की तरह पापा के साथ ज़िद करके पटाखों की दुकान पर जाता और ढेर सारे पटाखे खरीद कर उसे भाई बहनों के साथ खुशियों वाली खटपट के साथ प्यार से जलाता, फिर अचानक कानों में हॉर्न की आवाज और मैं वापस हकीकत की दुनिया में लौट आता हूँ और फ़िर पटाखों को एकटक निहारता हुआ आगे निकल जाता हूँ। 
दिवाली पर घर की मिठाईयों की भी बहुत याद आती है मगर कुछ कर नहीं सकते। 
हर साल जब दिवाली दस्तक देती है मैं सोचता हूँ अच्छा इस बार तो नहीं जा सका अगली बार पक्का, और हर साल यही दोहरा जाता है और हर साल की तरह इस दिवाली भी वही खालीपन और उदास शाम।
दिवाली उनके भी जो काम और पढ़ाई की वजह से घर नहीं जा पाते।
पूरी रचना caption में पढ़ें। दिवाली... दिवाली.... दिवाली
कितना हसीन है ये त्योहार जिसने ना जाने कितनी सारी खुशियाँ अपने दामन में छुपा रखी होती है, है ना ऐसा लगता है कायनात की सारी खूबसूरत छटाएँ खुद में छुपा रखी है।
लगता है स्वर्ग धरा पर उतर आयी हो और ज़न्नत की सारी रोशनी साथ लायी हो।
मेरे लिए दिवाली बहुत मायने रखता है और मेरा पसंदीदा त्योहार भी है ठीक वैसे हीं जैसे किसी रोते बच्चे को उसकी पसंद का खिलौना।
मगर पिछले कुछ सालों की तरह इस बार भी दिवाली कुछ फीकी सी लग रही है और लगे भी क्यों ना इस बार भी अकेले हीं तो दिवाली मना रहा हूँ, अरे नहीं तुम लोग तो हो साथ मगर परिवार भी साथ होता तो यूँ खालीपन ना लगता, यूँ दिवाली की शाम थोड़ी उदास ना होती और मैं भी फूलझड़ी की तरह खिल जाता।
हर दिवाली पटाखों की दुकान के सामने से गुज़रते वक़्त ज़ेहन में एक हीं बात आती है, काश मैं भी घर पर होता और पहले की तरह पापा के साथ ज़िद करके पटाखों की दुकान पर जाता और ढेर सारे पटाखे खरीद कर उसे भाई बहनों के साथ खुशियों वाली खटपट के साथ प्यार से जलाता, फिर अचानक कानों में हॉर्न की आवाज और मैं वापस हकीकत की दुनिया में लौट आता हूँ और फ़िर पटाखों को एकटक निहारता हुआ आगे निकल जाता हूँ। 
दिवाली पर घर की मिठाईयों की भी बहुत याद आती है मगर कुछ कर नहीं सकते। 
हर साल जब दिवाली दस्तक देती है मैं सोचता हूँ अच्छा इस बार तो नहीं जा सका अगली बार पक्का, और हर साल यही दोहरा जाता है और हर साल की तरह इस दिवाली भी वही खालीपन और उदास शाम।

दिवाली... दिवाली.... दिवाली कितना हसीन है ये त्योहार जिसने ना जाने कितनी सारी खुशियाँ अपने दामन में छुपा रखी होती है, है ना ऐसा लगता है कायनात की सारी खूबसूरत छटाएँ खुद में छुपा रखी है। लगता है स्वर्ग धरा पर उतर आयी हो और ज़न्नत की सारी रोशनी साथ लायी हो। मेरे लिए दिवाली बहुत मायने रखता है और मेरा पसंदीदा त्योहार भी है ठीक वैसे हीं जैसे किसी रोते बच्चे को उसकी पसंद का खिलौना। मगर पिछले कुछ सालों की तरह इस बार भी दिवाली कुछ फीकी सी लग रही है और लगे भी क्यों ना इस बार भी अकेले हीं तो दिवाली मना रहा हूँ, अरे नहीं तुम लोग तो हो साथ मगर परिवार भी साथ होता तो यूँ खालीपन ना लगता, यूँ दिवाली की शाम थोड़ी उदास ना होती और मैं भी फूलझड़ी की तरह खिल जाता। हर दिवाली पटाखों की दुकान के सामने से गुज़रते वक़्त ज़ेहन में एक हीं बात आती है, काश मैं भी घर पर होता और पहले की तरह पापा के साथ ज़िद करके पटाखों की दुकान पर जाता और ढेर सारे पटाखे खरीद कर उसे भाई बहनों के साथ खुशियों वाली खटपट के साथ प्यार से जलाता, फिर अचानक कानों में हॉर्न की आवाज और मैं वापस हकीकत की दुनिया में लौट आता हूँ और फ़िर पटाखों को एकटक निहारता हुआ आगे निकल जाता हूँ। दिवाली पर घर की मिठाईयों की भी बहुत याद आती है मगर कुछ कर नहीं सकते। हर साल जब दिवाली दस्तक देती है मैं सोचता हूँ अच्छा इस बार तो नहीं जा सका अगली बार पक्का, और हर साल यही दोहरा जाता है और हर साल की तरह इस दिवाली भी वही खालीपन और उदास शाम। #ख़ालीपन