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--(प्यार इन और उन दिनों वाले)-- तो अब इश्क थोड़ा प

--(प्यार इन और उन दिनों वाले)--

तो अब इश्क थोड़ा पहले से बदल से चुका है ..
ये बात उन दिनों की है जब प्यार बस प्यार हुआ करता था ...
आज की तरह टाइम पास नही...
पहले बालकनी टू बालकनी दीदार होता था...
और आज वीडियो कॉल होता है पर शायद वो सुकून नही होता....
पहले हफ़्तों खत का इंतजार होता था 
आज इक पल भी कहा करार आता है ..
जो अचानक कही टकरा जाने का मजा होता था
आज वहाँ मिलने के लिए प्लान होते है फिर भी शायद अब उनमें वो बात नही होती...
जो बात पहले इशारों में समझा दी जाती थी
आज वो टेक्स्ट करके बताई जाती है फिर भी बातें समझ कहा आती है...
इंतजार के वो पल कितने हसीन हुआ करते थे....
आज 1 sec का ऑफलाइन होना भी बर्दाश नही होता...
उस वक़्त बालकनी का खाली रह जाना नाराजगी होती थी..
और आज पोस्ट पड़ जाना नाराजगी होती है...
वो इश्क भी क्या गजब का इश्क था
आज एक blok करने से रिश्ते जो बिखर जाते है
तब न वो रिश्ते दिल से बनकर दिल मे ही lock रहते थे
कोई गम नही होता था मिलने बिछड़ने के क्योंकि तब का प्यार पाक होता था 
और उन्हें ये भी पता होता था कि हमारा इश्क चंद खतों और दिदारों तक मे ही सिमट के रहने वाला है
नही होती थी उस वक़्त के इश्क में कोई कमिटमेंट कोई वादे क्योंकि उन्हें एक दूसरे की खुशि की परवाह थी लेकिन अब वाला प्यार एक कमिटमेंट हो चुका है
और उसकी उम्र फोन से बिस्तर तक सिमट के रह गई हैं
परिभाषा बदली चुकी है इश्क की 
जज़्बात भी बदल चुके हैं 
तरिके भी बदल चुके है
शायद ये आधुनिक युग वाला प्यार कहा जाता है या वेल एडुकेटेड वाली गन्दगी
खैर जो भी हो इश्क और इश्क़ करने का तरीका अब दोनो बदल चुका है
और अगर उस जमाने मे उस जमाने वाला प्यार कोई करता है तो उसे गवार कहा जाता है

---©पीयू  --(प्यार इन और उन दिनों वाले)--

तो अब इश्क थोड़ा पहले से बदल से चुका है ..
ये बात उन दिनों की है जब प्यार बस प्यार हुआ करता था ...
आज की तरह टाइम पास नही...
पहले बालकनी टू बालकनी दीदार होता था...
और आज वीडियो कॉल होता है पर शायद वो सुकून नही होता....
पहले हफ़्तों खत का इंतजार होता था
--(प्यार इन और उन दिनों वाले)--

तो अब इश्क थोड़ा पहले से बदल से चुका है ..
ये बात उन दिनों की है जब प्यार बस प्यार हुआ करता था ...
आज की तरह टाइम पास नही...
पहले बालकनी टू बालकनी दीदार होता था...
और आज वीडियो कॉल होता है पर शायद वो सुकून नही होता....
पहले हफ़्तों खत का इंतजार होता था 
आज इक पल भी कहा करार आता है ..
जो अचानक कही टकरा जाने का मजा होता था
आज वहाँ मिलने के लिए प्लान होते है फिर भी शायद अब उनमें वो बात नही होती...
जो बात पहले इशारों में समझा दी जाती थी
आज वो टेक्स्ट करके बताई जाती है फिर भी बातें समझ कहा आती है...
इंतजार के वो पल कितने हसीन हुआ करते थे....
आज 1 sec का ऑफलाइन होना भी बर्दाश नही होता...
उस वक़्त बालकनी का खाली रह जाना नाराजगी होती थी..
और आज पोस्ट पड़ जाना नाराजगी होती है...
वो इश्क भी क्या गजब का इश्क था
आज एक blok करने से रिश्ते जो बिखर जाते है
तब न वो रिश्ते दिल से बनकर दिल मे ही lock रहते थे
कोई गम नही होता था मिलने बिछड़ने के क्योंकि तब का प्यार पाक होता था 
और उन्हें ये भी पता होता था कि हमारा इश्क चंद खतों और दिदारों तक मे ही सिमट के रहने वाला है
नही होती थी उस वक़्त के इश्क में कोई कमिटमेंट कोई वादे क्योंकि उन्हें एक दूसरे की खुशि की परवाह थी लेकिन अब वाला प्यार एक कमिटमेंट हो चुका है
और उसकी उम्र फोन से बिस्तर तक सिमट के रह गई हैं
परिभाषा बदली चुकी है इश्क की 
जज़्बात भी बदल चुके हैं 
तरिके भी बदल चुके है
शायद ये आधुनिक युग वाला प्यार कहा जाता है या वेल एडुकेटेड वाली गन्दगी
खैर जो भी हो इश्क और इश्क़ करने का तरीका अब दोनो बदल चुका है
और अगर उस जमाने मे उस जमाने वाला प्यार कोई करता है तो उसे गवार कहा जाता है

---©पीयू  --(प्यार इन और उन दिनों वाले)--

तो अब इश्क थोड़ा पहले से बदल से चुका है ..
ये बात उन दिनों की है जब प्यार बस प्यार हुआ करता था ...
आज की तरह टाइम पास नही...
पहले बालकनी टू बालकनी दीदार होता था...
और आज वीडियो कॉल होता है पर शायद वो सुकून नही होता....
पहले हफ़्तों खत का इंतजार होता था
priyapandey9492

piyu pandey

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