आता है वह हुल्लुक की तरह बेतरतीब-बेतहाशा-सरपट भगाते हुए- गुल कर दी गई बत्तियो के घुप्प अंधियारे में खदेड़-पिटते तुम्हें तब नजर आती हैं बस... मोबाइलों और सायरनों से कँप निकलती रौशनियों में वज्र-सी चमक-चमक उठती कहर-सी लाठियाँ - लहराती हवा में बिजली-सा तेज गेती-सा देती है तेज झटके ऐसे कि उद्घोषित हक-वो-हुकूक बा-आवाज़-बुलन्द हलक तक गटक, पड़ जाओ शिथिल, तुम पड़ जाओ मन्द... #protest_against_state_brutality @manas_pratyay #कविताई #कवितांश #सूरजमुखी_के_फूल © Ratan Kumar