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पल्लव की डायरी मिजाज अब बदलने लगे है शहरो में भी र

पल्लव की डायरी
मिजाज अब बदलने लगे है
शहरो में भी रोजगार ठंडे पड़ने लगे है
फीके पड़े है व्यापार 
कम्पनियों के कब्जे में आइटम सजने लगे है
दौड़ धूप हमारी 
चंद कमीशन पर संतोष रखने पड़ रहे है
वैश्वीकरण के नाम पर
गुलाम हम सब बनने लगे है
प्रतिबन्धों और पर्यावरण की
दुहाई दे देकर
सब व्यवस्था पेशेवरों के हाथ करने लगे है
सिर धुन कर हम सब बिखरने लगे है
                                              प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
  #Hum सिर धुन कर हम सब बिखरने लगे है
#nojotohindi

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