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दुनिया की इस भीड़ से दूर, मुझे तुम गुमनाम ही रहने द

दुनिया की इस भीड़ से दूर, मुझे तुम गुमनाम ही रहने दो।
बहुत जिल्लतें सही हैं मैंने, अब थोड़ा आराम ही रहने दो।

लाख ख़ुशियाँ बाँटी हैं मैंने, अब तक इस अंजान शहर में।
हुआ है मुझको हासिल जो, वो दर्द भरा इनाम ही रहने दो।

गुमसुम सी बीती है ज़िंदगी, अब तक अकेलेपन में रहकर।
मशहूर होने की चाहत नहीं, मुझे तो बदनाम ही रहने दो।

सुकूँ की तलाश में भटकता ही रहा, दिल ये मेरा दर-बदर।
मिला न कहीं चैन-ओ-सुकूँ, मुश्किल अब ये काम ही रहने दो।

काश कोई ये आकर कह दे, कुछ तो अपने बारे में सोचो।
ज़ुल्म-ओ-सितम की हुई इंतेहा, मुझपे ये इल्जाम ही रहने दो।

बेशक़ मैंने खुद को तड़पाया, पर न कभी शिकायत की।
किसको सुनाऊँ अपनी दास्ताँ, यारों अब ये काम ही रहने दो। ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1027 #collabwithकोराकाग़ज़

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊

♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा।

♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।
दुनिया की इस भीड़ से दूर, मुझे तुम गुमनाम ही रहने दो।
बहुत जिल्लतें सही हैं मैंने, अब थोड़ा आराम ही रहने दो।

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हुआ है मुझको हासिल जो, वो दर्द भरा इनाम ही रहने दो।

गुमसुम सी बीती है ज़िंदगी, अब तक अकेलेपन में रहकर।
मशहूर होने की चाहत नहीं, मुझे तो बदनाम ही रहने दो।

सुकूँ की तलाश में भटकता ही रहा, दिल ये मेरा दर-बदर।
मिला न कहीं चैन-ओ-सुकूँ, मुश्किल अब ये काम ही रहने दो।

काश कोई ये आकर कह दे, कुछ तो अपने बारे में सोचो।
ज़ुल्म-ओ-सितम की हुई इंतेहा, मुझपे ये इल्जाम ही रहने दो।

बेशक़ मैंने खुद को तड़पाया, पर न कभी शिकायत की।
किसको सुनाऊँ अपनी दास्ताँ, यारों अब ये काम ही रहने दो। ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1027 #collabwithकोराकाग़ज़

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