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जो छुआ उसने मर्म को, मेरी आह को मेरे दर्द को । रत

जो छुआ उसने मर्म को, मेरी आह को मेरे दर्द को ।
रत प्राण भौंचक्के रहे, कुछ भाव जागे अनकहे ।।

कविता संजोने मैं चला, टूटे हुए जो शब्द थे ।
वे खिल उठे मन मोद ले, कवि दौड़ आ लग जा गले ।।

यूँ चित्त की प्रसन्नता, का नाम ही तो प्रेम है ।
दो मन के बंधन खोल दें, दे बता अपना मोल दें ।।

अह रम रहा दिव्यांगना के, व्यक्तित्व में मैं हो अभय ।
तुम काव्य मेरी बन रही, मैं बन कवि होता अजय ।। "कवि का प्रेम"

एक कविता जिसकी रचना मैंने गत 20 मिनट के अंतराल में, उभरते हुए भावों के आधार पर की है।

#lovepoetry #alokstates #yqbaba #yqdidi #love #inspiration  #प्यारकेसातरंग
Sum Sumne
जो छुआ उसने मर्म को, मेरी आह को मेरे दर्द को ।
रत प्राण भौंचक्के रहे, कुछ भाव जागे अनकहे ।।

कविता संजोने मैं चला, टूटे हुए जो शब्द थे ।
वे खिल उठे मन मोद ले, कवि दौड़ आ लग जा गले ।।

यूँ चित्त की प्रसन्नता, का नाम ही तो प्रेम है ।
दो मन के बंधन खोल दें, दे बता अपना मोल दें ।।

अह रम रहा दिव्यांगना के, व्यक्तित्व में मैं हो अभय ।
तुम काव्य मेरी बन रही, मैं बन कवि होता अजय ।। "कवि का प्रेम"

एक कविता जिसकी रचना मैंने गत 20 मिनट के अंतराल में, उभरते हुए भावों के आधार पर की है।

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