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"ठिठुरता हुआ गणतंत्र" जनता– नेताजी यह समाजवाद कब

"ठिठुरता हुआ गणतंत्र"

जनता– नेताजी यह समाजवाद कब आएगी?
नेताजी –समाजवाद कोई मामूली चीज थोड़े ही हैं, जो यूं ही आ जाएगा।
बड़ी चीज के आने में देर होती ही है।
इसके लिए धैर्य रखना पड़ेगा।

👉समाजवाद प्रतिवर्ष दिल्ली से चलता है लेकिन राज्यों की राजधानी पहुंचते-पहुंचते उसका एक चौथाई भाग हड़प हो जाता है।
फिर जिला मुख्यालय तक आते-आते वह आधा हो जाता है। प्रखंड तक आते-आते वह चौथाई भर बच जाता है। फिर बड़ा बाबू और उसके बाद छोटा बाबू इत्यादि की टेबल ओं तक पहुंचते-पहुंचते, घूमते– घामते इतना व्यस्त रह जाता है कि पुनः दूसरा गणतंत्र दिवस आ जाता है।
और समाजवाद जहां का तहां रह जाता है।
😰😰😰 "ठिठुरता हुआ गणतंत्र"
हिंदी साहित्य के विख्यात निबंधकार "हरिशंकर परसाई जी के द्वारा"
"ठिठुरता हुआ गणतंत्र"

जनता– नेताजी यह समाजवाद कब आएगी?
नेताजी –समाजवाद कोई मामूली चीज थोड़े ही हैं, जो यूं ही आ जाएगा।
बड़ी चीज के आने में देर होती ही है।
इसके लिए धैर्य रखना पड़ेगा।

👉समाजवाद प्रतिवर्ष दिल्ली से चलता है लेकिन राज्यों की राजधानी पहुंचते-पहुंचते उसका एक चौथाई भाग हड़प हो जाता है।
फिर जिला मुख्यालय तक आते-आते वह आधा हो जाता है। प्रखंड तक आते-आते वह चौथाई भर बच जाता है। फिर बड़ा बाबू और उसके बाद छोटा बाबू इत्यादि की टेबल ओं तक पहुंचते-पहुंचते, घूमते– घामते इतना व्यस्त रह जाता है कि पुनः दूसरा गणतंत्र दिवस आ जाता है।
और समाजवाद जहां का तहां रह जाता है।
😰😰😰 "ठिठुरता हुआ गणतंत्र"
हिंदी साहित्य के विख्यात निबंधकार "हरिशंकर परसाई जी के द्वारा"
gautamyadav3503

Gautam Yadav

New Creator

"ठिठुरता हुआ गणतंत्र" हिंदी साहित्य के विख्यात निबंधकार "हरिशंकर परसाई जी के द्वारा"