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मैं कुछ कह रहा हूँ ग़ज़ल तो नहीं है, जो मैं सह रहा

मैं कुछ कह रहा हूँ ग़ज़ल तो नहीं है,
जो मैं सह रहा हूँ ग़ज़ल तो नहीं है।

कहे मेरा मन क्यों मैं टूटे किले-सा,
सहज ढह रहा हूँ ग़ज़ल तो नहीं है।

कभी लगता जैसे मैं भावों के सँग में,
स्वयं बह रहा हूँ ग़ज़ल तो नहीं है।

मंज़िल पे' पहुँचेगा जीवन जो श्रम में,
मैं ख़ुद नह रहा हूँ ग़ज़ल तो नहीं है।

बहर देखना मत 'सरस' इन पदों में,
मैं जो कह रहा हूँ ग़ज़ल तो नहीं है।

©सतीश तिवारी 'सरस' #बहर_देखना_मत

#Path
मैं कुछ कह रहा हूँ ग़ज़ल तो नहीं है,
जो मैं सह रहा हूँ ग़ज़ल तो नहीं है।

कहे मेरा मन क्यों मैं टूटे किले-सा,
सहज ढह रहा हूँ ग़ज़ल तो नहीं है।

कभी लगता जैसे मैं भावों के सँग में,
स्वयं बह रहा हूँ ग़ज़ल तो नहीं है।

मंज़िल पे' पहुँचेगा जीवन जो श्रम में,
मैं ख़ुद नह रहा हूँ ग़ज़ल तो नहीं है।

बहर देखना मत 'सरस' इन पदों में,
मैं जो कह रहा हूँ ग़ज़ल तो नहीं है।

©सतीश तिवारी 'सरस' #बहर_देखना_मत

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