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प्रेमिकाएं इस लिए भी ज्यादा नहीं रोतीं ! _________

प्रेमिकाएं इस लिए भी ज्यादा नहीं रोतीं !
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➳ क्रोध में कोई तो गंध होता है; 
    सीधा-सपाट सत्य अक्षुण्ण होता है।
    लज्जा जाती हैं आँखें बिगडे स्वर पर, 
    फिर कोप का लावा कुछ कम होता है ।

    आत्मसात् करती हैं प्रेमिकाएं
    कुदरत का हर गुण
    ठगे जाने पर मील का पत्थर 
    कर लेती हैं अपना मन

    सुनामी की दक्षता जैसे 
    किसी तट की मोहताज 
    नहीं होती !

    प्रेमिकाएं इस लिए भी ज्यादा नहीं रोतीं !  प्रेमिकाएं इस लिए भी ज्यादा नहीं रोतीं !
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➳ क्रोध में कोई तो गंध होता है; 
    सीधा-सपाट सत्य अक्षुण्ण होता है।
    लज्जा जाती हैं आँखें बिगडे स्वर पर, 
    फिर कोप का लावा कुछ कम होता है ।

    आत्मसात् करती हैं प्रेमिकाएं
प्रेमिकाएं इस लिए भी ज्यादा नहीं रोतीं !
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➳ क्रोध में कोई तो गंध होता है; 
    सीधा-सपाट सत्य अक्षुण्ण होता है।
    लज्जा जाती हैं आँखें बिगडे स्वर पर, 
    फिर कोप का लावा कुछ कम होता है ।

    आत्मसात् करती हैं प्रेमिकाएं
    कुदरत का हर गुण
    ठगे जाने पर मील का पत्थर 
    कर लेती हैं अपना मन

    सुनामी की दक्षता जैसे 
    किसी तट की मोहताज 
    नहीं होती !

    प्रेमिकाएं इस लिए भी ज्यादा नहीं रोतीं !  प्रेमिकाएं इस लिए भी ज्यादा नहीं रोतीं !
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➳ क्रोध में कोई तो गंध होता है; 
    सीधा-सपाट सत्य अक्षुण्ण होता है।
    लज्जा जाती हैं आँखें बिगडे स्वर पर, 
    फिर कोप का लावा कुछ कम होता है ।

    आत्मसात् करती हैं प्रेमिकाएं