White पल्लव की डायरी तेवर नारी के देखो घर घर मे संस्कारो का दायरा सिमट गया कामकाजी ग्रहस्थी का बोझ औरतो को नॉकरानी सा लगने लगा अपनी निजी जिंदगी जीने का भूत उन पर चढ़ गया बन्धन सारे पीछे छूते ममता का आँचल सिकुड़ गया एक डोर से बाँधने का जिम्मा था जिस पर उसका संयम आधुनिकता के सामने डोल गया बुनियाद परिवार की धूमिल होती नारी का अपनापन, बदले की भावना में बह गया प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #mothers_day नारी का अपनापन,लालच की भवनाओं में बह गया