सुहानी सांझ ढल रही,मंद मंद मुस्कुरा रही, शायद वह धीमें धीमें गीत प्यार का गा रही। रात को पुकार रही,चांद तारों को बुला रही, चांद को बुलाकर सूरज को कहां छुपा रही। प्रभात के भूलें भटकों को घर पर बुला रही, उजाले को विदा करके,अंधेरे को लुभा रही। चांद तारों को जगाकर के सबको सुला रही, अंधेरे संग मिलकर नींद की लोरी सुना रही। #ढलती सांझ