अम्मा; तुम तो धागा थी घर का, गूँथ रखे तुमने ख़ुद में, जाने कितने रिश्ते - नाते, मान - मनौव्वल हँसना - रोना, गुस्सा, प्यार भरी जज़्बातें, कैसी गिरहें बाँधी थी तुमने; जादू जैसी, जब चाहा कुछ ढीली कर दीं, जब चाहा समेट लिये सब रिश्ते, खुली रह गई जाने कैसे ये गिरहें, बिखर गये सब तिनका - तिनका, मुझको भी कुछ तो सिखला दो, जितनी कोशिश करता हूँ, गिरहें बन जाती हैं गाँठें..... #अभिशप्त_वरदान #अम्मा_तुम_तो_धागा_थी