जाने किसके लिए ये महल खड़े किए हैं... पैसों को दी तवज्जो बाकी सब रिश्ते परे किए हैं... दूर जब वो गया तो पता चला दिल के कितने करीब है ना... बात ये अजीब है ना.... दुनियां जीतने निकला आज खुद से ही हारा हूं... खुद चल रहा हूं बैसाखी पे और दूसरों का मैं सहारा हूं..... मां बाप को ठुकरा...घर को जो स्वर्ग कहलाए..... कैसा वो बदनसीब है ना... बात ये अजीब है ना... भगवान ऐसा क्यों चाहते हैं... किसी की भरी थाली...किसी को भूखा क्यों रखवाते हैं... पूछो तो सब बोलेंगे...अपना अपना नसीब है ना... बात ये अजीब है ना... #poetry #poem #baatein #beginner