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कलाई पर बंधी ये राखी आज भी, वक़्त नासूर बन कर , फर

कलाई पर बंधी ये राखी आज भी, वक़्त नासूर बन कर ,

फर्ज की रजा मंजूर करती है,

कलाई पर बंधी ये राखी आज भी

वतन के दुलारो की याद दिलाती है,
कलाई पर बंधी ये राखी आज भी, वक़्त नासूर बन कर ,

फर्ज की रजा मंजूर करती है,

कलाई पर बंधी ये राखी आज भी

वतन के दुलारो की याद दिलाती है,