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नया-पुराना कैसे मैं कहूं पर ज़र

नया-पुराना कैसे मैं कहूं पर  ज़रूर कहूंगा,
जाने वो कैसा मनहूस दिन था।
अपनी धुन में मस्त चलता गया,
मैं  मुश्किलों  से  अनजान था।
एक  कहर  मुझसे  टकरा  गई,
दवाखाने  में मेरा  आगमन था।
आंखें  खुली  झटका  सा लगा,
मेरे हाथों में  लगा सलाइन था।
झटका  लगना  कम  ना  हुआ,
ना  एक आंख थी ना कान था।
दोष  मेरा  हाथों में  स्मार्ट फोन,
और कान में बैरी इयरफोन था।

©अदनासा-
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