मैं लड़ता रहा जीवन कभी आसान नहीं रहा और संघर्ष वहाँ थे,जहाँ मैं खड़ा मुश्किलों में भी अंतर्द्वंद था मायने रखता था वो समय जो असीमित तो था मेरे पास पर शायद था...मैं बेपरवाह जिन लोगों से मैंने प्यार किया वो भी जैसे आये और चले गए दर्द और व्यथा से...सुकून जो बड़ा ये ज़िन्दगी के फलसफे कह गए लेकिन दुनिया कभी नहीं रुकी, और हम सभी आगे यूँ ही बढ़ते गए मुझे लड़ना था मेरे अपनों के लिए निःस्वार्थ मैं सबके लिए करता गया मायूस कभी हुआ नहीं मैं लड़ता था झगड़ता था तो बस अपने भीतर के शैतान से मैं अपने दम पर खड़ा था, और मुझे इन्ही प्रतिद्वन्दिताओं में मिलता रहा सहज ही वो रास्ता निश्चिंत होकर जिसपर मैं बढ़ता रहा क्यूंकि नज़र कमज़ोर हो रही थी पर दिखने लगा सब कुछ स्पष्ट था सालों बीत गए थे जैसे एक आँख की झपकी में, धूमिल हो चले थे दुख के क्षण, और आनंद बह गया मेरे अश्कों में कुछ रातों में आँसुओं से भरी नींदें फिर रोज़ चमकती उजली किरण और मुस्काती नए दिनों की सुबह। बीती उम्र के साथ जाना मैंने क्या ज़रूरी है पहचाना मैंने जिसके पीछे भागता रहा ज़िन्दगी भर उसमें मैं खुद कभी नहीं था छींट भर था तो बस...उम्मीदें और भूख वो भी इन चीज़ों को पाने की ललक जहाँ मेरा अस्तित्व शून्य था सब कुछ पाकर भी ना जाने क्यों वो ख़ुशी कहीं नहीं पाता हूँ एक अजीब सी भंवर में खुद को मैं रोज़ फँसा हुआ पाता हूँ शायद ये भी समझ नहीं पाया कि सबकी उम्मीदों पर मैं अब तक कितना खरा उतरा हूँ सफल हुआ खुशियाँ बाँटने में या बस खाली हाथ उस राह भी गुज़रा हूँ फिर भी मैं शांत मन से आज खुद को बैठा समझा रहा हूँ कोई कभी पूर्ण नहीं हो पाया है तब जाकर मैं आश्वस्त हुआ क्यूंकि खुद को मैंने सही पाया है दिल से निभाए सारे कर्त्तव्य मैंने कभी भी मुँह छिपाया नहीं मैंने ये सोचते कब मैं लड़खड़ा सा गया शायद प्रभु मिलन का वक़्त आ गय ©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) मैं लड़ता रहा जीवन कभी आसान नहीं रहा और संघर्ष वहाँ थे,जहाँ मैं खड़ा मुश्किलों में भी अंतर्द्वंद था मायने रखता था वो समय जो असीमित तो था मेरे पास पर शायद था...मैं बेपरवाह