इन घने ठोस सीमेंट रूपी जंगल में मैंने ख़ुद को बचाकर रखा है यूँही जहाँ सब प्लास्टिक सा है चाहे मुस्कान हो या इन्सान कोई भागता फिर रहा है अपने आप से कर्मो का हिसाब किताब नापता नहीं न जाने कौन सी घुन में, चला जा रहा Metro life