स्वयंवर का समय निकट आ गया था,, पहुंचे अपने गुरु के साथ श्री राम और लक्ष्मण सारा राज महल राजाओं से भरा था,, कई देव, कई दैत्य भी आए थे भाग स्वयंवर में लेने,, हर कोई समझे खुद को बहुत भाग्यशाली, हर कोई सोचे वह सबसे बड़ा वैभवशाली पर हर कोई हारे ना कोई जीत रहा था अब तो ज्यादा राजा जनक का भी मान घट रहा था,, माथे पर चिंता साफ दिखाई दे रही थी,, क्या मेरी बेटी नहीं ब्याह सकेगी जो कोई शिव धनुष को उठा ना सकेगा,, तो कैसे प्रतिज्ञा पूरी होगी हमारी,, तभी गुरु ने धीरज बाधा,, श्री राम को आगे बढ़ाया, उठाओ श्री राम शिव धनुष को आप गुरु की आज्ञा पाकर श्री राम ने धनुष को ज्यों ही उठाया उठाते ही धनुष को चढ़ाया भारी था बेशक,, पर प्रभु श्री राम को वो फूलों सा लगता धनुष उठाया तो डोरी चढ़ाई और धनुष अचानक से टूटा,, धनुष टूटने पर विस्मित हो गए सभी तभी आए ऋषि परशुराम जी भयंकर कोधाअग्नि में वह जल रहे थे,, कि मेरे प्रभु श्री शिव शंकर का धनुष किसने तोड़ा किस का साहस जागा इतना कि मेरे प्रभु का धनुष तोड़ा??, ©Shivani goyal धन्यवाद नोजोटो जो आपकी वजह से आज हम लेखकों को भी रामायण लिखने का मौका मिल रहा है। यह हमारे जीवन का सबसे बड़ी उपलब्धि है जो आज हमें यह अविस्मरणीय मौका मिला। यह मेरे जीवन की मेरे लिए एक महान उपलब्धि है और जो सिर्फ आपकी वजह से हैं। आपका दिल से धन्यवाद #NojotoRamleela2Day