उस तरफ चमक दमक देख उसने सोचा, "रहन सहन को कैसे सुधारूं मैं, रोटी नसीब नहीं, मकां पर पैसे, कैसे लगाऊं मैं । लल्ला को कागज तक नसीब नहीं, खुद की साड़ी पर पैसे, कैसे लगाऊं मैं।।" निराशा के बादल उसकी आंखो के आगे छाने लगे थे, तभी उसकी नजर दूसरी तरफ पड़ी, जहां लल्ला अखबार के टुकड़े को पढ़ने की कोशिश कर रहा था। देखकर उसकी आंखों में चमक आ गई। उसने उसी वक्त तय किया। "लल्ला को कैसे भी पढ़ाऊंगी, खुद 'पाव' से भी काम चलाऊंगी, सो जाऊंगी एक और दिन तारों के नीचे, रहन सहन का ये नाटक एक और दिन, इसी साड़ी में झेल जाऊंगी।" ★★★★★ ©Dr. Giridhar Kumar . एक छोटी सी कहानी - रहन सहन वह स्त्री है, वह कुछ भी कर सकती है। #Twowords #Zindagi #स्त्री #भूख #मकान #रोटी #कपड़ा Do like and comment,let me know your response. if you loved ,feel free to repost😊😊😊