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ठहरो ठहरो... इन हवाओं में क्लेश बहुत है, इधर उधर

ठहरो ठहरो...
इन हवाओं में क्लेश बहुत है, 
इधर उधर नहीं सुकून कहीं,
रंगरेज़ा के वहाँ चलो,
लंबे कपड़े के बीचो बीच
हल्की हल्की बूँदे पानी की और,
वहाँ की हवाएँ ऐश बहुत है,
इन हवाओं में क्लेश बहुत है, 
कहीं सुगंध नहीं खूबसूरती की, 
कहीं भी नहीं खूबसूरती भी, 
कलश और कुम्हार हैं जहाँ, 
उस मिट्टी को सूंघने वहाँ चलो, 
उन हवाओं में परिवेश बहुत है, 
इन हवाओं में क्लेश बहुत है, 
कोई जगह नहीं ऐसी, 
जहाँ हम पलकें बंद कर सकें, 
बंद पलकों के सपनें कैसे देखें, 
उस राजा की हवेली ठीक है, 
चलो वहाँ चलते हैं, 
उसकी ख़िड़की के किनारों पर, 
ख़्वाबों के लेश बहुत है, 
इन हवाओं में क्लेश बहुत है, 
जिंदगी की राह में नीड़ें बहुत है, 
कहीं से पानी बनकर भी
नहीं गुज़ार पायेंगे खुद को, 
उस हल वाले की झौंपड़ी चलो,
तुम भी वहाँ रहे हो पहले,
उस झौंपड़ी के सज्जे में,
तुम्हारे सुनहरे केश बहुत है,
इन हवाओं में क्लेश बहुत है
तुम्हारे दरमियां बीतना है, 
तुम रुको मत कहीं तो चलो
खुल जाओ और पंख खोल दो,
आज या कल तक नहीं जीना, 
अभी सांसें शेष बहुत है, 
इन हवाओं में क्लेश बहुत है, 


खेतदान चारण 😊
ठहरो ठहरो...
इन हवाओं में क्लेश बहुत है, 
इधर उधर नहीं सुकून कहीं,
रंगरेज़ा के वहाँ चलो,
लंबे कपड़े के बीचो बीच
हल्की हल्की बूँदे पानी की और,
वहाँ की हवाएँ ऐश बहुत है,
इन हवाओं में क्लेश बहुत है, 
कहीं सुगंध नहीं खूबसूरती की, 
कहीं भी नहीं खूबसूरती भी, 
कलश और कुम्हार हैं जहाँ, 
उस मिट्टी को सूंघने वहाँ चलो, 
उन हवाओं में परिवेश बहुत है, 
इन हवाओं में क्लेश बहुत है, 
कोई जगह नहीं ऐसी, 
जहाँ हम पलकें बंद कर सकें, 
बंद पलकों के सपनें कैसे देखें, 
उस राजा की हवेली ठीक है, 
चलो वहाँ चलते हैं, 
उसकी ख़िड़की के किनारों पर, 
ख़्वाबों के लेश बहुत है, 
इन हवाओं में क्लेश बहुत है, 
जिंदगी की राह में नीड़ें बहुत है, 
कहीं से पानी बनकर भी
नहीं गुज़ार पायेंगे खुद को, 
उस हल वाले की झौंपड़ी चलो,
तुम भी वहाँ रहे हो पहले,
उस झौंपड़ी के सज्जे में,
तुम्हारे सुनहरे केश बहुत है,
इन हवाओं में क्लेश बहुत है
तुम्हारे दरमियां बीतना है, 
तुम रुको मत कहीं तो चलो
खुल जाओ और पंख खोल दो,
आज या कल तक नहीं जीना, 
अभी सांसें शेष बहुत है, 
इन हवाओं में क्लेश बहुत है, 


खेतदान चारण 😊