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निस्बत का निशा मेरे जिस्म पे नज़र आता रहा वो ख्याल

निस्बत का निशा मेरे जिस्म पे नज़र आता रहा 
वो ख्याल -ऐ-तहज़ीब को मिटते रहे
 हम इंतज़ार में उनके गस्थ खाते रहे

©परवाज़ हाज़िर ........
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