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जब पकड़ी घर चलाने की डोर तब कहलाई नारी नहीं है कमज

जब पकड़ी घर चलाने की डोर
तब कहलाई नारी नहीं है कमजोर
करने बच्चों की ख्वाइशे पूरी
जब कर ली उसने अपनी हर इच्छाएं अधूरी
तब त्याग की मूरत कहलाई ये नारी
जवाब देना वो भी जानती
मगर परिवार के लिए चुप रह जाती
अपनों से ही हारी जब सबकुछ वो सह जाती
तब कहलाई बेचारी नारी
मगर बांटने को दिल का हाल
बेझिझक कहने को अपनी हर बात
जब वो एक सच्चा दोस्त बनाई 
तब क्यों नारी चरित्रहीन कहलाई
तब क्यों नारी चरित्रहीन कहलाई

©Garima Srivastava
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