परवाह ना कर अगर राह में लोग बिछाते हैं काँटे, किसी की किस्मत कहाँ कोई है बाँटे। जो मिलना है तुझे वो मिलेगा तुझे ज़रूर, कुबूल कर चाहे फ़िर फूल मिले या काँटे। यहाँ सभी अपने नसीब से हैं लड़ रहे, सबके जीवन में ज़्यादातर मिलेंगे सिर्फ़ काँटे। फूल जो इस जहां में बिखेर रहे हैं खुशबू, उनके साथ भी जुड़े हुए हैं काँटे। खुशियाँ इस जग मिलती हैं उन्हें ही, जिन्होंने दुखी जनों के दुःख हैं बाँटे। रह तू सदा मुस्कुराता हुआ, चाहे चुभे जितने भी तुझे काँटे। लेखन संगी ********* काँटें **""** ऐ दोस्त ज़िंदगी में सिर्फ़ नज़र आते है काँटे, क्या करूँ मेरे दोस्त न जाने क्यों लोग बिछाते हैं काँटे?