प्रातःकाल सबसे पहले उठकर जो भोजन पकाती है, सबको खिलाकर स्वयं जो आख़िर में खाती है, भाप से तर आख़िरी बची हुई रोटी भी जो खुद खा लेती है, और जब कभी भोजन कम पड़ जाए तो वो ख़ुद को भूखा रख लेती है, ये मां होती है साहब! जो आरंभ से अंत तक सब सह जाती है। ©||स्वयं लेखन|| प्रातःकाल सबसे पहले उठकर जो भोजन पकाती है, सबको खिलाकर स्वयं जो आख़िर में खाती है, भाप से तर आख़िरी बची हुई रोटी भी जो खुद खा लेती है,