(कस्तूरी सा मेरा प्रेम)✍️✍️✍️ ********************************** तुम्हारा अपनत्व और प्रेम मृगतृष्णा सा है जो अब तक मुझे प्राप्त न हो सका। तुम्हारा अप्राप्य प्रेम कभी मेरा न हो सका मन सब तरफ़ से भटक कर,फिर स्थिर हो जाता है कस्तूरी सा मेरा प्रेम जो तू अपने अंदर न पा सका संसार की बातों में भटका तुम्हारा ये मन न मुझे प्रेम दे सका न मुझे समझ सका... ©Richa Dhar #Drown कस्तूरी से मेरा प्रेम