मनुष्य की आलोचनाओं या समालोचना से परेय किन्तु पहला सत्य यही है की, वो अच्छा बनना चाहता है और दूसरा सत्य , की वो स्वयं को भिन्न रख कर शुरुवात भी तो नहीं करता ? ©Shivva Shailesh Chouhan मनुष्य की आलोचनाओं या समालोचना से परेय किन्तु पहला सत्य यही है की, वो अच्छा बनना चाहता है और दूसरा सत्य , की वो स्वयं को भिन्न रख कर शुरुवात भी तो नहीं करता ?