समय की धार...🙏🎋 अड़कर खड़ा था बांध वो, चुन-चुन ईंट पड़ी दीवार वो! नदी बिचारी दु:खयारी, चुपचाप गुमसाई बहती वो! हाय रे, क़िस्मत की मारी! काल समय की ललकार थी, आई नदी में उफ़ान थी। बवंडर बन वो आक्रोश में, मटियामेट दीवार थी! ऐसी समय की मांग थी! गर्जन भरती, फ़नकार करती, प्रचंड रूप की पहचान वो! उखड़ रहे पात्-ख़ार, बांध सारे, न जीवित ढीठ दीवार वो! उर्जा में जल-सैलाब वो! समय-समय की बात निराली, समय बांध की बलवान थी भई! आज पलटकर दुर्बल गुर्राए, तोड़ दीवार नदी, विध्वंश मचाई! बांध की बिसात पर वार थी वो! ©Shweatnisha Singh🌸 समय की धार...🙏🎋 🌸🌸🌸 🍃अड़कर खड़ा था बांध वो, चुन-चुन ईंट पड़ी दीवार वो! नदी बिचारी दु:खयारी, चुपचाप गुमसाई बहती वो! हाय रे, क़िस्मत की मारी!