हम सभी कितने कठोर होते हैं न! होते हैं या होने की कोशिश करते हैं। क्या इतना कठोर होना ही ज़रूरी है जीने के लिए? सच तो यह है कि दिनभर के अभिनय के बाद हर इंसान अपने कॉन्टैक्ट लिस्ट में एक ऐसे कॉन्टैक्ट की तलाश करता है जिसके साथ वो अपनी बनी-बनाई छवि से बाहर वही बने,जो वो है। जिसके साथ वो साझा कर सके अपने दुःख, दर्द, मजबूरियाँ, परेशानियाँ, बेवकूफियाँ, क्रोध और डर के पीछे बैठा असली डर। जिसके साथ बात करते वक़्त न वक़्त का पता चले और न मन के विभेद का। जिसके साथ दो पल बांटने से पहले दो पल बढ़ जाये। जिसके साथ चार बातें करने से दिल का बोझ तो हल्का हो पर जुबान का वजन बना रहे। जिसके साथ जीकर चार दिन की ज़िन्दगी चार दिन तक जीने का एहसास भी दे।
जय।@jaichandkumar