यादें ................ अब जब सुबह की पहली किरण बेरुखी से जगाती हैं तो माँ तेरे आँचल की बड़ी याद आती हैं दफ़्तर जाते वक़्त जब मेरी कुछ क़ागज खो जाती हैं ढूँढ़ ढूँढ़ कर जब देर हो जाती हैं और मेरी बस छूट जाती हैं तो माँ वो स्कुल के दिन मुझे बड़ी याद आती हैं जब कैंटीन के खाने से मन अघा सा जाता हैं सारे पक्वान पसंद के होते हैं पर गले से नीचे नहीं उत्तर पाती हैं तो माँ तेरी सूखी रोटी की बड़ी याद आती हैं जब खाते-खाते मुझको अब खाने में फिर कंकड़ मिल जाती हैं तो माँ तेरी रसोई की बड़ी याद आती घर जाने के बाद जब 3 कमरे के मकान में जब दो खाली ही रह जाती हैं और तू टूटे छत मैं बैठी होगी ये बातें मुझे अन्दर ही अन्दर खाती हैं तो माँ मुझे तेरी बड़ी याद आती हैं जब सारे जतन के बाद भी मुझे ये दफ़्तर के लोग नाकारा बुलाते हैं तो बचपन में मुझे तेरा राजा बेटा कह कर गले से लगाना और मेरे किए को दिल से लगाना जब ये सारी बातें कहीं पीछे छूट जाती हैं तो माँ तेरी बड़ी याद आती हैं जब कभी खरीदारी पर मैं जाता हूँ अपने तो मेरी नज़रें किसी अच्छे कमीज़ पर ठहर जाती हैं नहीं ले पाता फिर कुछ भी अपने लिए पैसे होने के बाद भी माँ जब तेरी फटी सारी मुझे याद आती हैं ये मकान नौकरी गाड़ी सब तो तेरे ख़्वाहिश की पाई माँ पर मेरे हँसने की बारी में ये आँख नम हो जाती हैं ये होली दीप दशहरा हर वर्ष आते हैं ना जाने क्यूँ वो बचपन वाली ख़ुशी क्यूँ नहीं आती हैं चिट्ठी फोन खबरे सब आते पर माँ तू क्यूँ नहीं आती हैं माँ तेरी बड़ी याद आती हैं #बदनाम शायर यादें ................ अब जब सुबह की पहली किरण बेरुखी से जगाती हैं तो माँ तेरे आँचल की बड़ी याद आती हैं दफ़्तर जाते वक़्त जब मेरी कुछ क़ागज खो जाती हैं ढूँढ़ ढूँढ़ कर जब देर हो जाती हैं और मेरी बस छूट जाती हैं तो माँ वो स्कुल के दिन मुझे बड़ी याद आती हैं जब कैंटीन के खाने से मन अघा सा जाता हैं