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दिये जला के अंधेरे मिटाने निकलीं हूं ब राह ए आम तु

दिये जला के अंधेरे मिटाने
निकलीं हूं ब राह ए आम
तुझे आजमाने निकलीं हूं

तकाजे क्या है मुहब्बत की
बे सबाती के ऐ दुनिया
वाले तुझे ये बताने निकली हूं

ये मोजीजा भी किसी रोज़
रू_नुमा होगा। ज़मीं को बाम ए
उफक से मिलने निकली हूं
मुझे कलम की हैं अता सो अब  कलम से यहां , 
मै कायनात का नक्शा बनाने निकली हूं
दिये जला के अंधेरे मिटाने
निकलीं हूं ब राह ए आम
तुझे आजमाने निकलीं हूं

तकाजे क्या है मुहब्बत की
बे सबाती के ऐ दुनिया
वाले तुझे ये बताने निकली हूं

ये मोजीजा भी किसी रोज़
रू_नुमा होगा। ज़मीं को बाम ए
उफक से मिलने निकली हूं
मुझे कलम की हैं अता सो अब  कलम से यहां , 
मै कायनात का नक्शा बनाने निकली हूं