दिये जला के अंधेरे मिटाने निकलीं हूं ब राह ए आम तुझे आजमाने निकलीं हूं तकाजे क्या है मुहब्बत की बे सबाती के ऐ दुनिया वाले तुझे ये बताने निकली हूं ये मोजीजा भी किसी रोज़ रू_नुमा होगा। ज़मीं को बाम ए उफक से मिलने निकली हूं मुझे कलम की हैं अता सो अब कलम से यहां , मै कायनात का नक्शा बनाने निकली हूं