जंगल बचाओ धरती बचाओ... मैंने सूरज की गर्मी से, तप्त धरा को देखा है। वन-उपवन हरियाली के बिन, मानव मरता देखा है।। करती थी अभिमान स्वयं पे, मैं जंगल की रानी हूँ। सपने से जागी तो देखा भूली हुई कहानी हूँ।। देख रही मानव का लालच कहे भाग का लेखा है। वन-उपवन हरियाली के बिन, मानव मरता देखा है।। कहो कहाँ तक मनुज रहेगा, मस्ती में जो डूबा है। मुझ हिरणी का घर भी छीना आगे क्या मंसूबा है। जंगल काटे वन भी काटे चमन उजड़ते देखा है वन-उपवन हरियाली के बिन, मानव मरता देखा है।। पेड़ों के झुरमुट में मैं तो, दौड़ लगाया करती थी। शेर,बाघ ,चीतों को भी मैं, खूब छकाया करती थी।। मत काटो जंगल उपवन को भू पर संकट देखा है। वन-उपवन हरियाली के बिन, मानव मरता देखा है।। जंगल बचाओ धरती बचाओ... मैंने सूरज की गर्मी से, तप्त धरा को देखा है। वन-उपवन हरियाली के बिन, मानव मरता देखा है।।