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श्री राम चले सब छोड़–छाड़। संग वैदेही हैं बिन किए

श्री राम चले सब छोड़–छाड़।
संग वैदेही हैं बिन किए श्रृंगार।

भर कर अपने मन में विषाद।
करते हैं जानकी से वो वाद।

बोले अब क्या है मेरा काम।
है कलयुग ये, ना कि मेरा याम।

घर–घर में कलह है युद्ध यहां।
पावन धरती अब शुद्ध कहां।

मेरा काज तनिक ना शेष यहां।
अब बसते कई लंकेश यहां।

ना तरकश में मेरे इतने तीर।
की दूं मैं सबकी नाभि चीर।

यही शोक जो, हर क्षण मार रहा।
क्या विफल मेरा अवतार रहा ?

भर कर मन में पीड़ा अपार।
श्री राम चले सब छोड़–छाड़।।२।।

                       #आशुतोष_मिश्रा
श्री राम चले सब छोड़–छाड़।
संग वैदेही हैं बिन किए श्रृंगार।

भर कर अपने मन में विषाद।
करते हैं जानकी से वो वाद।

बोले अब क्या है मेरा काम।
है कलयुग ये, ना कि मेरा याम।

घर–घर में कलह है युद्ध यहां।
पावन धरती अब शुद्ध कहां।

मेरा काज तनिक ना शेष यहां।
अब बसते कई लंकेश यहां।

ना तरकश में मेरे इतने तीर।
की दूं मैं सबकी नाभि चीर।

यही शोक जो, हर क्षण मार रहा।
क्या विफल मेरा अवतार रहा ?

भर कर मन में पीड़ा अपार।
श्री राम चले सब छोड़–छाड़।।२।।

                       #आशुतोष_मिश्रा