मैं अब बिल्कुल बूढ़ा हूं, कभी रोपे थे आम,जामुन बो जवां हो गए, मैं कटे पेड़ का ठूंठा हूं, पल दो पल मेरी बची कहानी है, मै अब खट्टा छांछ बचा हूं, घी मथने की हाथ तेरे मथानी है, क्या करूं शिकायत अब, रब तुझसे, वक़्त,वक़्त की बात है मालिक, अपनों ने ही छीना सब कुछ मुझसे, नाथ विनय है,कभी बुढ़ापा तुम मत देना, आंख नहीं है,दांत नहीं है,बदन कांपता, चबा न पाऊं, सूखा चबैना, नाथ विनय है,कभी बुढ़ापा तुम मत देना। ©Rajesh rajak नाथ विनय है,कभी बुढ़ापा तुम मत देना,