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बेबसी-ओ-मुफ़लिसी से इक बार फिर ज़िन्दगी हार गयी..

बेबसी-ओ-मुफ़लिसी से
इक बार फिर ज़िन्दगी हार गयी.. 
किसानों के देश में दोबारा से 
नन्हें बच्चों को भुखमरी मार गयी... भुखमरी कल मैने एक ख़बर पड़ी कि 
          "दिल्ली में 3 बच्चे भुखमरी से मरे "

होने को तो ख़बर छोटी सी थी, लेकिन कितनी गहन, जटिल और मार्मिक हैं ये समस्या. ये कैसी विडम्बना है दिल्ली जैसे महानगर में कुछ नन्हें बच्चे भुखमरी से मर जाते हैं, ये वो दिल्ली है जो अपने दिलदार होने के लिए जानी जाती है. दिल्ली जैसे महानगर में ऐसी घटना सामान्य नहीं है.

ये 3 बच्चों की मौत नहीं है, ये मौत है हमारी संवेदनाओं की. क्या हम सब इतने सन्वेदनहीन हो गए हैं कि हमको किसी बच्चे की भुख नही दिखी. युँ तो हम खुब दावे करते हैं सामाजिक सुधार के, लेकिन क्या यही सुधार हुआ है. 
कभी कोई बच्चा खाना चुराता है, कभी कोइ बच्ची खाने के लिए बिक जाती हैं या कोइ  भीख मांगता है. साहब ये मुफ़लिसी नही है, ये मजबुरी है समाज की, ये हमारी बेबसी है.
बेबसी-ओ-मुफ़लिसी से
इक बार फिर ज़िन्दगी हार गयी.. 
किसानों के देश में दोबारा से 
नन्हें बच्चों को भुखमरी मार गयी... भुखमरी कल मैने एक ख़बर पड़ी कि 
          "दिल्ली में 3 बच्चे भुखमरी से मरे "

होने को तो ख़बर छोटी सी थी, लेकिन कितनी गहन, जटिल और मार्मिक हैं ये समस्या. ये कैसी विडम्बना है दिल्ली जैसे महानगर में कुछ नन्हें बच्चे भुखमरी से मर जाते हैं, ये वो दिल्ली है जो अपने दिलदार होने के लिए जानी जाती है. दिल्ली जैसे महानगर में ऐसी घटना सामान्य नहीं है.

ये 3 बच्चों की मौत नहीं है, ये मौत है हमारी संवेदनाओं की. क्या हम सब इतने सन्वेदनहीन हो गए हैं कि हमको किसी बच्चे की भुख नही दिखी. युँ तो हम खुब दावे करते हैं सामाजिक सुधार के, लेकिन क्या यही सुधार हुआ है. 
कभी कोई बच्चा खाना चुराता है, कभी कोइ बच्ची खाने के लिए बिक जाती हैं या कोइ  भीख मांगता है. साहब ये मुफ़लिसी नही है, ये मजबुरी है समाज की, ये हमारी बेबसी है.
mayassar5805

Mayassar

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भुखमरी कल मैने एक ख़बर पड़ी कि "दिल्ली में 3 बच्चे भुखमरी से मरे " होने को तो ख़बर छोटी सी थी, लेकिन कितनी गहन, जटिल और मार्मिक हैं ये समस्या. ये कैसी विडम्बना है दिल्ली जैसे महानगर में कुछ नन्हें बच्चे भुखमरी से मर जाते हैं, ये वो दिल्ली है जो अपने दिलदार होने के लिए जानी जाती है. दिल्ली जैसे महानगर में ऐसी घटना सामान्य नहीं है. ये 3 बच्चों की मौत नहीं है, ये मौत है हमारी संवेदनाओं की. क्या हम सब इतने सन्वेदनहीन हो गए हैं कि हमको किसी बच्चे की भुख नही दिखी. युँ तो हम खुब दावे करते हैं सामाजिक सुधार के, लेकिन क्या यही सुधार हुआ है. कभी कोई बच्चा खाना चुराता है, कभी कोइ बच्ची खाने के लिए बिक जाती हैं या कोइ भीख मांगता है. साहब ये मुफ़लिसी नही है, ये मजबुरी है समाज की, ये हमारी बेबसी है. #nojotohindi #nojotourdu #poority