ख्वाब देखना और दिखाना भी एक हूनर है साहिब जिंदगी में देखे हर ख्वाब मुकम्मल नहीं हाेते.... हाँ मैं धंधा करती हूँ । मैं धंधा करती हूं ख्वाबाें का, कुछ अनकही,अनसुलझी जज्बाताें का। बदले में पैसे नहीं कमाती हूँ, बस कुछ रिसते जख्माें पर मरहम लगाती हूँ । कभी किसी जन्म में रह गया था कुछ अधूरा सा , निकाल कर उन्हें अवचेतन मन से