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मगर सोचने से होगा क्या जब पूरा राष्ट्र भ्र्ष्टाचार

मगर सोचने से होगा क्या
जब पूरा राष्ट्र भ्र्ष्टाचार से पीड़ित हो
मगर आप इसका दावा भी ना कर सकें।
खुदरा व्यवस्था की होड़ में
जमा व्यवस्था किताबी हो गई
व्यवस्था तंत्र ने एक विकसित राष्ट्र के तर्ज पर
मानवाधिकार से विशेषाधिकार तक 
उत्थान मक्खन लगाया है
मगर यह पिघलता नहीं है
भले ही नया विकास हो।
लोकतंत्र का मक्खन चाहने वालों
लोकतंत्र का मक्खन मत निकालो
मगर सोचने से होगा क्या
चौकीदार... कभी तो तर्क के बल लोकतंत्र को निहारते
आवश्यक संवेदना में सावधानी को पुकारते

सोचने से हुआ भी क्या है!
सोचने से होगा भी क्या!
#सोचनेसे #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi #विप्रणु #yqdidi #life #poetry
मगर सोचने से होगा क्या
जब पूरा राष्ट्र भ्र्ष्टाचार से पीड़ित हो
मगर आप इसका दावा भी ना कर सकें।
खुदरा व्यवस्था की होड़ में
जमा व्यवस्था किताबी हो गई
व्यवस्था तंत्र ने एक विकसित राष्ट्र के तर्ज पर
मानवाधिकार से विशेषाधिकार तक 
उत्थान मक्खन लगाया है
मगर यह पिघलता नहीं है
भले ही नया विकास हो।
लोकतंत्र का मक्खन चाहने वालों
लोकतंत्र का मक्खन मत निकालो
मगर सोचने से होगा क्या
चौकीदार... कभी तो तर्क के बल लोकतंत्र को निहारते
आवश्यक संवेदना में सावधानी को पुकारते

सोचने से हुआ भी क्या है!
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